मुझे मालूम है Bastar Dussehra को लेकर आपको तरह-तरह के सवाल होंगे जैसे कि Bastar Dussehra kyoon manaya jata hai, bastar dussehra ki suruaat kisne ki, Chhattisgarh ka bastar dussehra kitne dino tak chalta hai , Bstar Dusserhra kitne din ka hota hai, Bastar dussehra me kiski puja ki jati hai, Bastar Dussehra kitne charano me hota hai, kon kon si rasme nibhayi jati hai, इत्यादि ऐसे कई सवाल होंगे जिसे मैं आज आपको बताने जा रहा हूं ।
Bastar Dussehra क्या है
विश्व विख्यात Bastar Dussehra , बस्तर के आदिवासी अंचल में मनाया जाने वाला एक सर्वोपरि उत्सव है । यह बस्तर अंचल की अराध्य मां दंतेश्वरी के पूजा अनुष्ठान का पर्वहै । विभिन्न रस्मों को निभाते हुए यह 75 दिनों में सम्पन्न होता है ।
बस्तर दशहरा की शुरुआत सावन अमावस्या को पाट जात्रा विधान से होती है और समापन क्वार (आश्विन) माह के शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी को ओहाड़ी विधान के साथ होती है ।
यह पर्व इसलिए अन्य दशहरा से भिन्न है क्योंकि जहां एक ओर विजयदशमी के दिन संपूर्ण भारत में रावण दहन का कार्य होता है वहीं दूसरी ओर बस्तर में आठ पहिए वाला रथ स्थापित कर दंतेवाड़ा के दंतेश्वरी मंदिर से लाया गया छत्र को भी स्थापित किया जाता है जो कि माता के स्थापित होने का प्रतीक होता है ।
उसके बाद इसकी झांकी निकाली जाती है । जगदलपुर शहर में इसे लोग श्रद्धा से अपने हाथों से खींचते है । यही वो रस्म है जिसे देखने के लिए भारी संख्या में लोग बस्तर की ओर रुख करते हैं ।
Bastar Dussehra की शुरुआत कैसे हुई
Bastar Dussehra की शुरुआत काकतीय राजा पुरुषोत्तम देव ने 1408 में अपने शासन काल (1408–1439) के दौरान की थी । ऐसा माना जाता है कि राजा पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथ पुरी की तीर्थ यात्राकी थी जहां पुरी के राजा ने उन्हें रथपति की उपाधि से अलंकृत किया था । तीर्थयात्रा की वापसी के पश्चात पुरुषोत्तम देव ने गोंचा पर्व (रथ यात्रा) के साथ दशहरा पर्व में भी रथ खींचने की परंपरा की शुरुआत की । इस परंपरा को आज 615 साल हो चुके हैं पर यह परंपरा आज भी वैसे ही बस्तर अंचल में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है ।
बस्तर दशहरा कितने दिन का होता है
बस्तर दशहरा 75 दिन का होता है । यह विभिन्न रस्मों के साथ संपन्न होता है । इस वर्ष 17 जुलाई 2023 से यह पर्व पाट जात्रा से प्रारंभ हो चुका है । 2023 का बस्तर दशहरा एक महीने का अधिमास के कारण 107 दिनों का होगा।
Bastar Dussehra में कौन कौन से रस्में निभाई जाती है
बस्तर दशहरा में मुख्य रूप से 13 रस्में निभाई जाती है
पाट जात्रा
डेरी गड़ाई
काछिनगादी
जोगी बिठाई
रथ परिक्रमा
निशा जात्रा
जोगी उठाई
मावली परघाव
भीतर रैनी
बाहर रैनी
काछिन जात्रा
मुड़िया दरबार
ओहाड़ी
पाट जात्रा
बस्तर दशहरा की शुरुआत पाट जात्रा रस्म से होती है । यह रस्म सावन अमावस्या अर्थात हरेलीके दिन होता है । इस दिन बिलोरी ग्राम के निवासी मचकोट के जंगल में जाकर साल वृक्ष की कटाई करते हैं जिसका पहला लठ्ठा ठूरलू खोटलाकहलाता है । लकड़ी को एक जात्रा द्वारा कंधे में लादकर दंतेश्वरी मंदिर (जगदलपुर) के सामने लाया जाता है और बस्तर दशहरा के लिए बनाए जाने वाले दुमंजिला विशाल रथ के लिए लायी गयी इस लकड़ी तथा निर्माण में प्रयोग की जाने वाली परंपरागत औजारों की पूजा अर्चना की जाती है । इसमें मांगुर मछली की बलि भी दी जाती है
डेरी गड़ाई
डेरी गड़ाई रथ बनाने वाली जनजाति के लिए झोपड़ी बनाने की रस्म है । जब साल लकड़ी की कटाई करके उसे जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के सामने लाया जाता है तो उसके साथ साल वृक्ष की टहनियों को भी साथ लाया जाता है और इन टहनियों अर्थात डेरी से बस्तर दशहरा के लिए बनाई जाने वाली रथ निर्माण करने वालों के लिए अस्थाई झोपड़ी बनाई जाती है । इस झोपड़ी में सांवरा जनजाति रथ निर्माण करने तक रहती है । सिर्फ सांवरा जनजाति ही रथ का निर्माण करते हैं लेकिन वर्तमान समय में अन्य जनजाति यह कार्य करती है क्योंकि सांवरा जनजाति तेजी से विलुप्त हो रही है ।
काछिनगादी
यह रस्म आश्विन (क्वार) अमावस्या को किया जाता है । इस दिन काछिनदेवी बस्तर दशहरे की शुरुआत के लिए आशिर्वाद देती है । काछिनदेवी मिरगान जाति की देवी है ,
काछिनदेवी मिरगान जाति के कन्या के ऊपर ही आती है । जिन्हे कांटो के झूलों पर बैठाकर लाकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है , काछिनदेवी आशिर्वाद देती है तब बस्तर दशहरे की शुरुआत होती है ।
जोगी बिठाई
इस रस्म को काछिनगादी के अगले दिन ही किया जाता है ।
हलबा जनजाति का युवक जिसे जोगी का पद दिया जाता है । उसे सिरहासार ( दंतेश्वरी माता मंदिर के पुजारी जिसे सिरहा कहा जाता है उसके घर के सामने का स्थान ) में गड्ढा खोदकर वहां बैठा दिया आता है जिसे जोगी बिठाई कहते है । यह रस्म आश्विन माह के शुक्ल पक्ष के प्रथमा को होता है । जोगी उस गड्ढे में9 दिन तक बिना अन्न जल ग्रहण किए तप करता है ताकि बस्तर दशहरा निर्विघ्न संपन्न हो जाए ।
रथ परिक्रमा
इस रस्म को जोगी बिठाई के अगले दिन ही किया जाता है । आश्विन माह के शुक्ल पक्ष के द्वितीया से सप्तमी तक चार पहिए वाले रथ को पूरे जगदलपुर शहर में घुमाया जाता है जिसे रथ परिक्रमा कहा जाता है ।
निशा जात्रा
इस रस्म को रथ परिक्रमा समाप्त होने के अगले दिन ही किया जाता है । यह रस्म आश्विन माह के शुक्ल पक्ष के अष्टमी को मनाया जाता है । इस दिन भैरवदेव और मावलीमाता को बलि के रूप में कुम्हड़ा , बकरा , मोंगरी मछली आदि चढ़ाई जाती है इसके बाद इसे प्रसाद के रूप में जनजातियों द्वारा ग्रहण किया जाता है ।
जोगी उठाई
इस रस्म को निशा जात्रा के अगले दिन ही किया जाता है ।
आश्विन शुक्ल नवमीको जोगी को सिरहासार के गड्ढे से उठाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है ।
मावली परघाव
आश्विन शुक्ल नवमीको बस्तर के राज परिवार द्वारा अपने घर में मावली माता का स्वागत किया जाता है । जोगी बिठाई और मावली परघाव दोनों एक ही दिन संपन्न होता है ।
भीतर रैनी
विजयादशमीके दिन जहां एक ओर पूरे भारत में रावण का दहन किया जाता है वहीं दूसरी ओर बस्तर में आठ पहिए वाले रथ में दंतेश्वरी माता को स्थापितकर संपूर्ण शहर में घुमाया जाता है । इस झांकी को देखने दूर दूर से लोग आते हैं और यही बस्तर दशहरा का आकर्षण का कारण है । यही इसे अन्य जगह मनाने वाले दशहरा से इसे भिन्न बनाती है ।
इस रथ में दंतेवाड़ा से लाया गया छत्र को भी स्थापित किया जाता है जो माता के विराजमान का प्रतीक होता है । श्रद्धालु रथ को पूरे श्रद्धा के साथ पूरे शहर में खींचते हैं तथा राज्य पुलिस के द्वारा माता को सलामी भी दी जाती है ।
बाहर रैनी
आश्विन शुक्ल एकादशी को माता का रात्रि में बाहर रहना बाहर रैनी कहलाता है । माता रात्रि को बाहर शयन इसलिए करती है क्योंकि दशहरे की रात कोकुम्हड़ाकोट गांव के लोग माता के रथ को चुराकर अपने गांव लाते हैं। यह भी एक रस्म है जिसमे कुम्हड़ाकोट गांव का मुखिया रात्रि को माता के रथ का स्वागत करता है और अपने यहां उपजा पहला अन्न माता को अर्पित करता है । इस प्रकार माता का
इस तरह बाहर रहना बाहर रैनी कहलाता है ।
इसी (आश्विन शुक्ल एकादशी) दिन बस्तर का राजा / राज परिवार के लोग कुम्हड़ा कोट गांव में आते हैं और गांव वालों से संवाद करते है और उन्हें मनाकर रथ को भतरा जनजाति के धनुर्धारी द्वारा सुरक्षा देते हुए वापस जगदलपुर शहर लाया जाता है ।
काछिन जात्रा
आश्विन शुक्ल द्वादशीको काछिनदेवी को बस्तर दशहरा के शुरुआत के लिए आशिर्वाद व आज्ञा देने के लिए धन्यवादअर्पित किया जाता है ।
मुड़िया दरबार
काछिन जात्रा और मुड़िया दरबार दोनो एक ही दिन आश्विन शुक्ल द्वादशीको संपन्न होता है । इसमें राज परिवार व जनजातियों के मध्य वार्तालाप होता है । और मुड़िया जनजाति के लोगों की समस्याओं पर चर्चा करते हुए उसके समस्याओं का निराकरण का प्रयास किया जाता है। वर्तमान समय में राज परिवार के साथ साथ शासकीय प्रतिनिधि भी इसमें शामिल होते हैं और समस्याओं का निराकरण करने की कोशिश करते हैं ।
ओहाड़ी
यह बस्तर दशहरा का अंतिम रस्म है इसे आश्विन शुक्ल त्रयोदशीको किया जाता है अर्थात मुड़िया दरबार के अगले दिन ही । इस दिन राज परिवार व अन्य सभी लोग गंगा मुंडा तालाब में एकत्रित होते हैं और माता को बस्तर दशहरा संपन्न होने के लिए धन्यवाद देते हैं ।
उपसंहार
75 दिनों में सम्पन्न होने वाला Bastar Dussehra बस्तर को अलग पहचान देती है और यहां की दशहरा को अन्य जगह मनाए जाने वाले दशहरा से भिन्न बनाती है । यह दशहरा बस्तर के जनजातियों के लिए एक भव्य आयोजन के समान है जहां यह विभिन्न विधि विधान से गुजरते हुए बड़े हर्ष और उल्लास के साथ संपन्न होता है ।
बस्तर दशहरा सिर्फ भारत वर्ष में ही विख्यात नही है बल्कि यह विदेशों में विख्यात है इसलिए इसे विश्व विख्यात बस्तर दशहरा कहने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए ।
FAQs
1. बस्तर दशहरा कितने दिनों तक मनाया जाता है?
उत्तर – 75 दिन
2. बस्तर दशहरा में मुख्य रूप से कितनी रस्में निभाई जाती है ?
उत्तर – 13 रस्म
3. बस्तर दशहरा की शुरुआत किसने की थी ?
उत्तर – राजा पुरुषोत्तम देव
4. बस्तर दशहरा में रथ का निर्माण कौन सी जनजाति करती है ?
उत्तर – सांवरा जनजाति
5. काछिनगादी किसकी देवी है ?
उत्तर – मिरगान जाति की देवी, युद्ध तथा शौर्य की देवी
6. बस्तर दशहरा 2023 कितने दिनों का मनाया गया ?
उत्तर – 107
7. बस्तर दशहरा में किसकी पूजा की जाती है ?
उत्तर – मां दंतेश्वरी
8. bastar dussehra is celebrated in which state
Ans – Chhattisgarh
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