मेरे ज़ेहन में एक बात चल रही थी कि आखिर दिल या दिमाग किसकी सुनें ? इसे सोच ही रहा था तो इस बात की ओर ध्यान गया कि दिल तो lubb – dubb की आवाज के साथ पूरे शरीर में ब्लड पंप करता है लेकिन कुछ कहता नही है तो फिर ये सवाल कैसा कि दिल या दिमाग किसकी सुनें ? वैसे तो दिमाग भी कुछ नहीं कहता पर विचार तो वहीं से उत्पन्न होते हैं ।

जब शब्दों की ओर ध्यान दोगे और सोचोगे तो आपको भी ये दिल या दिमाग वाली बात समझ में आयेगी । जब हम बोलते हैं ना कि मेरा दिल मुझसे ये कह रहा है , मेरा दिल चाहता है कि मैं ये करूं मैं वो करूं । लेकिन असल में हमारा दिल हमसे कुछ नही कह रहा होता वो तो हमारे दिमाग में चल रहा विचार होता है । जिसे हम मान लेते हैं कि वो मेरा दिल कह रहा है । उसे हम दिल का नाम दे देते हैं ।
मैंने, दिल के द्वारा कहने वाली बात अधिकतर कविताओं में सुना है और शायद आप भी शायरी या कविता में सुनी होगी या तो मेरी तरह आप भी किसी के मुख से सुना होगा । जैसे – तू वो कर जो तेरा दिल चाहता है , मेरा दिल भी यही कहता है , मेरी दिल की आवाज । ऐसे ही कुछ कविता या शायरी या कुछ बातें हम सुने होते हैं जो हमारे दिमाग में बस जाती है । और उसी चीज को बिना सोचे हम दोहराते रहते हैं तो वो विचार एक धारणा का रूप ले लेती है और हम वही मानने लगते हैं ।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि कविता में दिल शब्द का प्रयोग करते हुए भावनाओं को व्यक्त किया जाता है वो कविता लिखने वाले के दिमाग में चल रही विचार होती है , जिसे भावनाओं के रूप में सामने रखता है । और हम कई बार उसकी भावनाओं के बजाय उसके शब्द को पकड़ लेते हैं कि मेरा दिल मुझसे ये कहता है ।
जब हम कहते हैं ना कि मैं अपनी दिल की सुनूंगा , या अपनी दिल का सुनता हूं । तो भी हम अपने दिमाग में चल रही विचारों को ही मानते रहते है इस समय भी हम अपने दिमाग की सुनते है ।
हमने खुद दिल और दिमाग की सुनने वाली बात को सामने लाया है और हम सब ने यह स्वीकार कर लिया है कि हमारा दिल हमसे कुछ कहता है । हम ये सब कहते हुए जरा भी नही सोचते कि हम क्या कह रहे हैं । हम अपने दिमाग में चल रही आवाज को दिल की आवाज कहते हैं , आंतरिक चेतना की भावनाओं को दिल की भावना कहते हैं । ये सभी चीजें सामन्य सी बात हो गई जिसके बारे में अधिकतर लोग सोचते नही है ।
यहां कोई गलत नही है हम सब सही है परंतु यहां शब्दों का खेल है । जो बताता है कि जो आप कह रहे हैं ना वो तो संभव ही नही है क्योंकि प्रकृति ने सबको अपना अपना कार्य सौंपा है तो वो उससे हटकर कैसे कार्य कर सकता है । दिल का धड़कना , ब्लड पंप करना उसकी प्रकृति है । दिमाग में विचार आना वो उसकी प्रकृति है ।
जब हम कहते हैं कि दिल या दिमाग किसकी सुनें ? ऐसे सवाल इसलिए आते हैं क्योंकि हमारे दिमाग में दो भिन्न भिन्न बातों पर द्वंद्व छिड़ा होता है और हमे लगता है कि एक चीज मेरा दिल कह रहा है और दूसरा मेरा दिमाग । पर ऐसा नही होता । वो दोनो विचार तो हमारे दिमाग के ही होते हैं जो कि हमारे अनुभवों से ग्रहण किए होते हैं या किसी से प्रभावित हुए होते हैं ।
जब हमारे भीतर पहले से ही कोई विचार होता है और हम किसी के संपर्क में आते हैं तो जब वह अपना विचार बताता है और जब वह हमारे विचार से भिन्न होता है तो हम उसके बीच भेद करने लग जाते हैं और फिर इसी कारण ये सवाल आता है कि दिल या दिमाग किसकी सुनें ?
दिमाग कोई भी निर्णय तर्क कुतर्क करके ही लेता । फ्यूचर के बारे में भी सोचता है । जिनका आधार हमारे दिमाग में मौजूद विचार होते हैं और जिनसे ही भावनाओं की उत्पति होती है जो हमारे निर्णय लेने में मददगार साबित होते हैं ।
तो किसकी सुने ?
दिमाग लगाकर ही कोई फैसला लेना चाहिए । पर दिल दिमाग के इतर एक और शब्द है अंतर्मन । अंतर्मन मतलब आंतरिक चेतना । ये भी हमारे दिमाग में संग्रहित विचारों के आधार पर ही भावनाएं उत्पन्न करती है जिसे हम अंतर्मन की बात कहते हैं ।
अधिकतर युवा वर्ग ऐसे ही स्थिति का सामना करता है, जहां कैरियर निर्धारित करते समय उसे सलाह देने वाले अनेकों मिल जाते हैं, पर क्या वो वाकई में सही होते हैं या गलत इससे हम अनजान रहते हैं कोई कहेगा वो कर ले, कोई कहेगा ये करले बेचारा वो आदमी बड़ा परेशान हो जाता है, असमंजस में पड़ जाता है । उसके भीतर से भी आवाज आता है, पर वो पूरी तरह भ्रमित हो जाता है। उसे समझ नहीं आता कि वो करे तो क्या करे ? किसकी सुने ?
इस बदलती दुनिया में हमारे पास कैरियर्स के कई ऑप्शंस है । पर इतने ऑप्शंस होने के बावजूद हम ये डिसाइड नहीं कर पाते कि हम करें तो क्या करें किस राह में जाएं हमारा अंतर्मन हमें सही मार्ग दिखाने का प्रयास करता है जो कि हमारे दिमाग में एकत्रित विचार और भावनाओं के आधार पर होता है । पर हम भीड़ के पीछे चलने का प्रयास करते हैं पर हमारा अंतर्मन कुछ और चाहता है, वो ये चाहता है कि आप अपने अंतर्मन की बात सुनें ।
मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ की आप बहुत सोच कर रखे होंगे कि आपको फ्यूचर में क्या करना है पर आप इस भीड़ को देख कर घबरा से जाते हैं। आप हट कर सोचते हैं पर आप इस भीड़ भाड़ की दुनिया को देखकर यह सोच में पड़ जाते हैं कि आप सही कर रहे हैं या गलत पर आप सही कर रहे होते है। इसलिए सदैव आपको अपने अंतर्मन की बातें सुनना चाहिए ।
आपका अंतर्मन चाहता है कि आप अपना सपना पूरा करें, आपका अंतर्मन चाहता है कि आप जो सोचते हैं वो करें । आप ये न करें की आप इस भीड़ के पीछे चलें। एक बात कहता हूँ जब आप अपने इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य करते हैं तो आपको निराशा के अलावा कुछ हासिल नहीं होता। इसलिए आप खुद के विरुद्ध जाकर किसी के कहने पर कुछ भी फैसला लेने से बचे, क्योंकि आखिर उससे आपको ही गुजरना है। इसलिए मैं कहता हूं की आप अपनी स्वयं की बात सुने ।
इस कन्फ्यूजन में आपको ही सही फैसला लेना होगा। क्योंकि ये पूरी आपकी जिंदगी का सवाल है। ये दुनिया नही बता पायेगा की आपको क्या अच्छा लगता है, आप क्या सोचते है, आप किसमे अच्छे हैं, किसमे बेस्ट कर सकते हैं। अगर कोई सोच रहा होगा की ये पसंद नापसंद तो कोई भी बता सकता है, पर उनसे यही कहता हूँ की वो लोग बस अंदाजा लगाते है। पर आप स्वयं को खुद अच्छे से समझते हैं जानते हैं । तो आपको ही फैसला लेना होगा की आपको कहां जाना है किसकी बात सुनना है किसकी नही आपको आपके अंतर्मन से आने वाली आवाज को कभी इग्नोर नही करना है, उसकी बातों का चिंतन करना है ।
अगर आप बहुत ही ज्यादा कन्फ्यूजन में हैं, आप समझ नहीं पा रहे हैं की आपको क्या करना है, आपको क्या अच्छा लगता है तो आपको शांत मन से चिंतन करना है, अपने अंतर्मन की गहराई में झांककर देखना है स्वयं से सवाल करना है कि दरअसल आपको क्या चाहिए आपको क्या अच्छा लगता है आपका अंतर्मन आपसे क्या कहता है फिर उधर से जवाब आयेगा…….
तु वो ना कर जो ये दुनिया चाहता है
तु वो कर जो तेरा अंतर्मन चाहता है
आपको आपका अंतर्मन जवाब देगा की आप इस चिंता को छोड़ दीजिए की ये पूरी दुनिया क्या बोलता है, बस आप ये ध्यान दें कि एक्चुअली में आपका दिमाग आपसे क्या कहता है ।
इन सभी बातों का कहने का तात्पर्य यह था कि हमें अपनी अंतर्मन की बात सुनना चाहिए कि कहीं बाद में ऐसा ना हो कि आप उससे पछताएं कि आप कुछ और करना चाह रहे थे और आप कुछ और कर बैठे । सबसे बड़ी बात यह है कि एक बार बीता हुआ समय कभी लौट कर नहीं आयेगा ।
तो सुने सबकी पर करें अपने मन की
निष्कर्ष
अब दोस्तों आपको समझ आ ही गया होगा की हमें किसकी बात सुनना चाहिए । जब हम दिल की आवाज कहते हैं ना तो वो हमारे दिमाग का ही विचार होता है और जब हम अंतर्मन कहते हैं तो भी वह दिमाग का ही विचार होता है तो अपने दिमाग की सुनना चाहिए । जिस कार्य के लिए प्रकृति ने उसे चुना है वह कार्य उसे करने देना चाहिए । अंतर्मन कहें या दिमाग दोनो एक से हैं बस अंतर इतना है कि अंतर्मन भावना से निर्णय लेता है और दिमाग तर्क विश्लेषण से ।
तो हमें अपनी भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अंतर्मन और दिमाग दोनो की बातों को सुनना चाहिए तथा जीवन में फैसले इन दोनो की बात सुनते हुए लेना चाहिए । जहां जिसकी जरूरत हो उसी के आधार पर निर्णय लेने चाहिए ।