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छत्तीसगढ़ के बस्तर में Rath Yatra कब , कैसे मनाया जाता है यह जानने से पहले हम यह जानेंगे कि Rath Yatra की शुरुआत कहां से हुई ।
Rath Yatra की पृष्ठभूमि
Rath Yatra अर्थात रथों का उत्सव – भगवान जगन्नाथ , बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक 3 कि.मी लंबी यात्रा का उत्सव है । हालांकि वर्तमान में यह उत्सव देश के विभिन्न क्षेत्रों में मनाया जाता है पर इसकी शुरुआत ओडिशा से हुई है ।
औपचारिक रूप से ओडिशा के पुरी में Rath Yatra का पर्व मनाया जाता है । जिसमें लकड़ी के बने 3 रथों को श्रद्धापूर्वक खींचा जाता है । इन तीनों रथों में भगवान बलभद्र का 16 पहिया , भगवान जगन्नाथ का 18 पहिया तथा देवी सुभद्रा का 14 पहिया वाला रथ होता है । जिसे भक्तगण रस्सियों से खींचते हैं ।
रथ यात्रा 9 दिनों तक चलती है । यात्रा में निकलने वाले तीन रथों में अलग अलग देवता विराजमान होते हैं । पहले रथ में भगवान बलभद्र , दूसरे रथ में देवी सुभद्रा और सुदर्शन चक्र तथा तीसरे रथ में भगवान जगन्नाथ होते हैं । इस वर्ष 2024 में रथ यात्रा 7 जुलाई 2024 दिन रविवार को होगा ।
जगन्नाथ रथ यात्रा प्रत्येक वर्ष मनाई जाने वाली हिंदू त्यौहार है जिसे आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष के द्वितीया तिथि को मनाया जाता है । इस त्यौहार को मनाने के पीछे एक किंवदंती प्रचलित है ।
किंवदंती यह है कि एक बार जब सुभद्रा ने गुंडिचा में अपनी मौसी के घर जाने की इच्छा प्रकट की तो उनकी इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने अपनी बहन के साथ चलने का निर्णय लिया और फिर भगवान जगन्नाथ , भगवान बलभद्र , और देवी सुभद्रा ने रथ पर सवार होकर गुंडिचा तक यात्रा की ।
इसी यात्रा की याद में प्रत्येक वर्ष जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक देवी देवता को रथ में स्थापित कर यात्रा कराई जाती है , और इस यात्रा को एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है ।
Rath Yatra का प्रारंभ किस वर्ष हुआ इसकी जानकारी तो नही है पर लोगों का मानना है कि यह त्यौहार प्राचीन काल से मनाया जा रहा है और यह भी कहा जाता है कि इस रथ यात्रा को ब्रह्म पुराण , स्कंद पुराण में हिंदू धर्म का प्रमुख त्यौहार बताया गया है । पुरी के जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 1174 ई. में हुई है लेकिन इस त्यौहार को मंदिर निर्माण के पहले से ही परंपरानुसार पीढ़ी दर पीढ़ी मनाया जाता आ रहा है ।
Rath Yatra ना सिर्फ ओडिशा में मनाया जाता है बल्कि देश के विभिन्न राज्यों में भी मनाया जाता है जिसमे छत्तीसगढ़ भी अछूता नहीं रहा है । वैसे तो छत्तीसगढ़ के प्रमुख नगरों में मनाया जाता है परंतु बस्तर का रथ यात्रा ना सिर्फ भारत में बल्कि विश्व में भी प्रसिद्ध है जिसे गोंचा पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
अब आगे हम बस्तर के रथ यात्रा यानि गोंचा पर्व के बारे में जानेंगे कि इसकी शुरुआत किसने , कैसे और कब की और इसमें क्या – क्या विधि विधान किया जाता है ।
छत्तीसगढ़ के बस्तर में Rath Yatra / गोंचा पर्व
Rath Yatra / गोंचा पर्व क्या है
औपचारिक रूप से ओडिशा में मनाया जाने वाला Rath Yatra को छत्तीसगढ़ के बस्तर में गोंचा पर्व के रूप में मनाया जाता है । एक ओर आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को पूरे भारत में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के बस्तर में रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के रथ को बच्चे , युवक – युवतियां तुपकी से सलामी देते हैं ।
यह अनोखी परंपरा सभी को रोमांचित और आकर्षित करती है । यह परंपरा भगवान जगन्नाथ के प्रति लोगों का अगाध श्रद्धा , सम्मान को दर्शाता है । इस परंपरा के कारण बस्तर का रथ यात्रा अन्य रथ यात्रा से अनूठा है साथ ही यह बस्तर के रथ यात्रा को अलग पहचान के साथ विश्व प्रसिद्धि दिलाता है ।
बस्तर में Rath Yatra / गोंचा पर्व की शुरुआत कैसे हुई
जिला मुख्यालय जगदलपुर में मनाया जाने वाला गोंचा पर्व की शुरुआत काकतीय / चालुक्य राजा पुरुषोत्तम देव ने 1408 में की थी । ऐसा माना जाता है कि काकतीय राजा पुरुषोत्तम देव ने राजगद्दी प्राप्त करने के बाद जगन्नाथ पुरी की पैदल तीर्थ यात्रा की थी । तब पुरी के तत्कालीन राजा गजपति ने पुरुषोत्तम देव को रथपति की उपाधि से सम्मानित किया और 16 पहियों वाला रथ भेंट किया ।
जब पुरुषोत्तम देव तीर्थ यात्रा से लौटे तो पुरी से साथ आए ब्राह्मणों के सलाह पर राजा ने मंदिर बनवाकर भगवान जगन्नाथ , भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित की और प्रत्येक वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को बस्तर में पुरी ( ओडिशा ) की तरह रथ खींचने ( रथ यात्रा ) की परंपरा की शुरुआत की जो कि बस्तर में गोंचा पर्व के रूप में जाना गया । गोंचा पर्व के अलावा विश्व विख्यात बस्तर दशहरा में भी रथ खींचने की परंपरा की शुरुआत की ।
आज गोंचा पर्व और बस्तर दशहरा को मनाते हुए 615 साल पूर्ण हो चुके हैं और यह परंपरा आज भी वैसे ही उत्साह के साथ बस्तर मुख्यालय जगदलपुर में मनाया जा रहा है । इस वर्ष 7 जुलाई 2024 को मनाया जाने वाला रथ यात्रा 616 वां क्रम का होगा ।
गोंचा पर्व / Rath Yatra कब मनाया जाता है
गोंचा पर्व आषाढ़ ( जून – जुलाई ) माह शुक्ल पक्ष के द्वितीया तिथि को मनाया जाता है । यह एक दिन में संपन्न होने वाला पर्व नही है , इसमें विभिन्न विधि विधान का पालन किया जाता है । बस्तर दशहरा की तरह ही इसके लिए कुछ महीने पूर्व ही रथ निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया जाता है और समय से पूर्व निर्माण कार्य पूरे नियमों के साथ पूर्ण कर लिया जाता है ।
फिर देवस्नान /चंदन जात्रा , अनसर , नेत्रोत्सव , रथ यात्रा , उसके बाद भगवान को पुनः मंदिर में स्थापित किया जाता है । इन सभी विधान को पूरा करते हुए रथ यात्रा संपन्न होता है । हम जिस Rath Yatra को देखने के लिए लालायित , उत्सुक होते हैं वो आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को होता है जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं और श्रद्धा से रथ को खींचते हैं ।
गोंचा पर्व ( Rath Yatra ) में विधान या गतिविधियां
- देवस्नान / चंदन जात्रा
- अनसर
- नेत्रोत्सव
- रथ यात्रा / गोंचा पर्व
- हेरापंचमी पूजा विधान
- छप्पन भोग का अर्पण
- बाहुड़ा गोंचा पूजा विधान
- देवशयनी पूजा विधान
देवस्नान / चंदन जात्रा
देवस्नान जगदलपुर के सिरहासार चौक में स्थित जगन्नाथ मंदिर में ज्येष्ठ पूर्णिमा को होता है । भगवान शालीग्राम का चंदन , पंचामृत तथा इंद्रावती नदी के जल से अभिषेक किया जाता है और फिर पूजा कर शालीग्राम को मंदिर के गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया जाता है ।
मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ , देवी सुभद्रा , और भगवान बलभद्र के 22 विग्रहों पर चंदन का लेप लगाया जाता है और इंद्रावती नदी के जल से स्नान कराया जाता है फिर 22 विग्रहों को जगन्नाथ मंदिर के मध्य में स्थित मुक्ति मंडप में स्थापित किया जाता है ।
गोंचा पर्व में संपूर्ण पूजा अर्चना आरण्यक ब्राह्मणों के दल द्वारा किया जाता है ।
अनसर
ज्येष्ठ कृष्ण प्रथमा से अमावस्या ( 15 दिन ) तक भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमार पड़ते हैं जिसे अनसर कहा जाता है । इस अनसर कल के दौरान भगवान का दर्शन वर्जित होता है ।
नेत्रोत्सव
आषाढ़ शुक्ल प्रथमा को भगवान जगन्नाथ स्वामी स्वस्थ होकर भक्तो को दर्शन देते हैं । भक्तों के साथ भगवान जगन्नाथ स्वामी का आध्यात्मिक मिलन ही नेत्रोत्सव कहलाता है ।
रथ यात्रा / गोंचा पर्व
यही वो मुख्य दिन है जिसके लिए बस्तर का रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है । आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान जगन्नाथ , देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र को रथारूढ़ कर यात्रा के साथ सिरहासर लाया जाता है । यात्रा के दौरान भक्तगण भगवान को बांस से बने तुपकी से सलामी देते हैं ।
तुपकी से सलामी गोंचा पर्व / Goncha Parv की खास पहचान है ,यही वो दिन है जिसे देखने के लिए लोग बस्तर जिला के मुख्यालय जगदलपुर की ओर रुख करते हैं । रथ यात्रा को स्थानीय लोगों के द्वारा रदुथिया भी कहा जाता है।
हेरापंचमी पूजा विधान
छप्पन भोग का अर्पण
बाहुड़ा गोंचा पूजा विधान
देवशयनी पूजा विधान
सिरहसार भवन में भगवान 9 दिन विश्राम करते हैं उसके बाद उन्हे विधि – विधान के साथ वापस जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया जाता है । भगवान के विश्राम के अंतराल में भी कई विधान होते हैं जो ऊपर लिखित है ।
FAQs
1. गोंचा पर्व कब मनाया जाता है ?
बस्तर में रथ यात्रा को गोंचा पर्व के रूप में आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है ।
2. जगदलपुर में गोंचा महोत्सव किस महीने में आयोजित किया जाता है ?
जगदलपुर में गोंचा पर्व आषाढ़ माह अर्थात जून – जुलाई महीने में आयोजित किया जाता है
3. गोंचा त्यौहार कैसे मनाया जाता है ?
गोंचा त्यौहार भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का त्यौहार है जो कि विभिन्न विधि विधान से संपन्न होता है ।
- देवस्नान / चंदन जात्रा
- अनसर
- नेत्रोत्सव
- रथ यात्रा / गोंचा पर्व
- हेरापंचमी पूजा विधान
- छप्पन भोग का अर्पण
- बाहुड़ा गोंचा पूजा विधान
- देवशयनी पूजा विधान
इनका वर्णन ऊपर विधान वाले शीर्षक में पढ़ सकते हो । गोंचा पर्व का सबसे खास पहचान तुपकी से सलामी है । रथ यात्रा के दौरान लोग भगवान को बांस से बने तुपकी से सलामी देते हैं । तुपकी में एक जंगली फल जिसे पेंग कहा जाता है उसे गोली की तरह उपयोग किया जाता है । विश्व में कहीं भी ऐसी परंपरा को निभाया नही जाता , तभी तो बस्तर का रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है ।
4. तुपकी क्या है ?
बंदूक रूपी तुपकी बांस की खपची , ताड़ के पत्ते से बना होता है जिसे रंग बिरंगे पन्नी तथा कागज से सजाया भी जाता है । इस बंदूक रूपी तुपकी का उपयोग रथ यात्रा को सलामी देने के लिए किया जाता है । जिसमें गोली के रूप में पेंग / मालकांगिनी फल का प्रयोग किया जाता है ।
5. गोंचा पर्व में उपयोग होने वाला मालकांगिनी / पेंग क्या है ?
तुपकी के लिए गोली के रूप में उपयोग होने वाला पेंग छर्रानुमा ठोस जंगली लता का फल है । जो की आषाढ़ महीने में जंगलों में फलता है । इसे स्थानीय लोग पेंग कहते हैं जिसका हिंदी नाम मालकांगिनी है । इस फल का उपयोग दर्द निवारक औषधीय तेल के निर्माण में भी किया जाता है ।
6. रथ यात्रा कब है 2024 / Rath Yatra 2024 date
2024 में रथ यात्रा 7 जुलाई ( आषाढ़ शुक्ल द्वितीया ) को है
7. रथ यात्रा कितने दिनों तक चलती है ?
रथ यात्रा 9 दिनों ( आषाढ़ शुक्ल द्वितीया – दशमी) तक चलती है ।
8. रथ यात्रा क्यों मनाया जाता है ?
रथ यात्रा मनाने के पीछे एक किंवदंती प्रचलित है कि एक बार जब सुभद्रा ने अपनी मौसी के घर ( गुंडिचा में ) जाने की इच्छा जाहिर की तो उसे पूरा करने के लिए भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने अपनी बहन के साथ जाने का सोचा और फिर भगवान जगन्नाथ , भगवान बलभद्र , और देवी सुभद्रा तीनों ने रथ पर सवार होकर गुंडिचा तक यात्रा की । इसी यात्रा की याद में हर वर्ष जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक रथ यात्रा की जाती है , और इस यात्रा को एक त्यौहार के रूप में मनाया जाता है ।
9. जगन्नाथ जी की मौसी का क्या नाम है ?
गुंडिचा देवी
10. रथ यात्रा कहां का प्रसिद्ध है ?
पुरी , ओडिशा की भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा विश्व भर में प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं । इसके अलावा छत्तीसगढ़ के बस्तर में मनाया जाने वाला रथ यात्रा जिसे गोंचा पर्व के रूप में भी जाना जाता है वह तुपकी से भगवान को सलामी देने की अनोखी परंपरा के लिए प्रसिद्ध है , इसके समान कहीं भी ऐसी परंपरा प्रचलित नही है ।