कोई भी व्यक्ति बुरा नही होता बुरा तो उसे विचार बनाते हैं चाहे यह विचार उसके स्वयं का हो या किसी और का । इसी विचार / विचारधारा के आधार पर ही आज किसी को अच्छा तो किसी को बुरा व्यक्ति कहा जाता है ।
हमें कोई व्यक्ति कब अच्छा लगता है ? यह सवाल बड़ा रोचक है , कोई व्यक्ति हमें तब अच्छा लगता है जब वो हमें तरह ही सोचता है , उसकी प्रवृत्ति , व्यक्तित्व , आचरण हमारे समान हो । हम जिस चीज को स्वीकार करते हैं वो भी उसी चीज को स्वीकार करता है हम जिसे नकारते हैं वो भी उसी चीज को नकारता है तो हमें वह व्यक्ति अच्छा लगने लगता है । जब तक वो तुम्हारे हां में हां मिलाए तो वो सही है पर जिस दिन वो थोड़ी ऊंची सुर में बात कर ले , तुमसे सहमत ना हो तो वो बुरा बन जाता है फिर वो व्यक्ति आंखों के सामने खटकने लगता है ।
इस संसार में जितने भी व्यक्ति हैं सभी के विचार एक दूसरे से भिन्न है । सभी अपनी – अपनी बुद्धि का प्रयोग कर अपनी सोच / विचार व्यक्त करते हैं जिससे भी किसी के विचार मिलते हैं तो वो उसके संग हो लेता है और जिससे नही मिलता उससे दूर हो जाता है । कुछ विचार मिलने पर यह बिल्कुल भी नही कहा जा सकता कि उनके विचार एक जैसे हैं । यह विचार भी तो समय के साथ बदलते जाता है । विचार में परिस्थिति के आधार पर परिवर्तन होते जाता है ।
कोई चीज किसी के नज़रिए से सही नजर आता है तो वहीं किसी और के नज़रिए से वही गलत नजर आता है । यही तो है विचारधारा / विचारों की लड़ाई । सभी के विचार एक समान नही हो सकते । विचार को एक समान करने के लिए समझौता करना पड़ता है तो हम कह ही नही सकते की विचार समान है ।
आज दुनिया में जहां कहीं भी लड़ाई / संघर्ष / तनाव होती है उसके पीछे भी एक सोच / विचार जिम्मेदार होती है । दुनिया में क्या अपने देश में ही देख लो चाहे वो बिजनेस में हो , राजनीति में हो , धर्म में हो , जाति में हो , रस्म रिवाज में हो , समाज के नियमों में हो …… इनके पीछे भी एक विचार खड़ी है ।
देश की बात छोड़ो आप अपने घर में ही देख लो घर की लड़ाई झगड़े , बहस , तनाव में भी विचार / विचारधारा ही इसका कारण होता है । सोच ना मिलने पर वैवाहिक जीवन ही बिखर जाता है , कई दंपति एक दूसरे से अलग हो जाते हैं और अपने अपने रास्ते चल पड़ते हैं ।
घर में साथ रहकर भी कोई धार्मिक है तो कोई नही , किसी को घर में ऐसा बदलाव चाहिए तो किसी को वैसा , किसी को कोई सब्जी पसंद है तो किसी को नही । घर बनाते समय किसी को लगता है कि कमरा थोड़ा छोटा होना चाहिए वहीं किसी को लगता है कि बड़ा होना चाहिए , किसी को काले रंग की टाइल्स लगाना सही लगता है तो किसी को सफेद , किसी को लगता है कि दरवाजा खिड़की यहां होना चाहिए तो किसी को लगता है दरवाजा खिड़की वहां होना चाहिए । कुछ ऐसे ही विचारों की लड़ाई होती है ।
घर की बात देख लिए तो अब थोड़ा स्वयं के अंदर भी झांक कर देख लो । मन में चल रही बात पर ही तकरार हो जाता है । कभी आपका मन कहेगा ये सही है ये करना चाहिए कभी कहेगा नही वो करना चाहिए वो सही है । कभी आपके मन को कोई व्यक्ति अच्छा लगता है तो कभी वही बुरा लगता है । देख लो मनभूमि में भी इस तरह विचारधारा की लड़ाई होती है ।
इतिहास में जितने भी घटनाएं हुई है उसके पीछे भी एक विचार ही था – चाहे वह सभ्यताओं की लड़ाई हो , चाहे धार्मिक युद्ध हो , वर्चस्व की लड़ाई हो , विदेशी आक्रमण हो , सत्ता की लड़ाई हो , चाहे भारत में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन हो या कांग्रेस का नरमदल गरमदल में विभाजन हो , सभी का सूत्रपात एक विचार ही था ।
शीतयुद्ध भी विचारधारा की लड़ाई थी । एक ओर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका पूंजीवादी विचारधारा वाला तो एक ओर सोवियत संघ रूस साम्यवादी विचारधारा वाला देश था । और इन दोनो की लड़ाई में विश्व के बाकि देश उस पक्ष में चले गए जिधर उनका झुकाव था , जिस विचार को वो मानते थे । उस समय चली शीत युद्ध का असर आज भी देखने को मिलता है । आज भी दुनिया द्विध्रुवीय नजर आती है ।
विचार / विचारधारा का अस्तित्व सदा बना रहेगा
किसी व्यक्ति को अच्छा या बुरा बनाने में किसी दूसरे का विचार भी जिम्मेदार होता है । किसी दूसरे व्यक्ति का विचार किसी के व्यक्तिगत विचार को भी प्रभावित कर देता है । सोचना आपके साथ ऐसा हुआ है कि नहीं कि आप किसी को जानते तक नही हो और उसके लिए कही गई बात आप किसी और से सुनते हो आप उनकी बातों को सुनकर अपने मन में वैसा ही धारणा बना लेते हो और उस व्यक्ति को आप अच्छा या बुरा व्यक्ति मानने लगते हो जबकि आप उसको जानते , समझते तक नही हो ।
यहां पर किसी एक का विचार किसी और के विचार पर हावी हो जाता है । क्या होता यदि उस निश्चित व्यक्ति के बारे में कुछ नही बताया गया होता तो उसके प्रति विचार भी नही होते और फिर जब उससे आप मिलते तो आप स्वयं के विचार उसके प्रति बनाते और अपनी प्रतिक्रिया उसी के अनुरूप देते ।
हमारा किसी को मानना या ना मानना हमारा व्यक्तिगत विचार है । हमारा किसी चीज का करना या ना करना भी हमारा व्यक्तिगत विचार है । इस विचार पर हमारा अधिकार होना चाहिए । किसी को किसी के विचार के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार नही है ।
किसी के विचारों को पूर्णत बदला नही जा सकता । जब तक व्यक्ति है तब तक उसके विचारों में बदलाव होते रहेंगे । नए विचारों का समावेश होगा , पुराना विचार खत्म होगा या तो बरकरार रहेगा । जब जब व्यक्ति अपने आस पास चीजों को महसूस करता रहेगा , जीवन यापन करता रहेगा विचारों का प्रवाह सदा बना रहेगा ।
व्यक्ति भी एक विचार है । जिसका एक तत्व शरीर है । शरीर तो नष्ट हो जाएगा लेकिन व्यक्ति रूपी विचार का अस्तित्व सदा रहेगा । विचारों को नष्ट नही किया जा सकता । जब हम व्यक्ति कहते हैं तो हम एक शरीर की कल्पना करते हैं , लेकिन केवल शरीर मात्र से व्यक्ति नही बनता । व्यक्ति की संपूर्णता तो शरीर , मन , बुद्धि , आत्मा , आचरण , व्यक्तित्व , भाव भंगिमा , व्यवहार से है ।
विचार का अस्तित्व हमेशा रहेगा ना कि शरीर का , तो अपने विचारों को मजबूत , दृढ़ बनाओ ताकि कोई आपके विचारों को परिवर्तित ना कर सके । विचार इतने प्रबल हो कि वही आपका व्यक्तित्व बन जाए । आपके विचार आपके हैं वही आपके अस्तित्व का आधार है ।
इसे पढ़ने के बाद कई सवाल उभर कर आएंगे और उसे जानने के बाद फिर सवाल आएंगे , मन में उठने वाले सवालों का सिलसिला कभी खत्म नही होगा क्योंकि विचारों का प्रवाह हमेशा होता रहेगा । विचारों को संतुष्ट नही किया जा सकता , विचार की जिज्ञासा बढ़ती ही जाती है ।
मेरे विचार आपके विचार से समान या भिन्न हो सकता है ।
धन्यवाद …. !