कलयुग ( Kalyug )संघर्ष और द्वंद्व का युग है जहाँ रावण और राम दोनों हमारे ही भीतर हैं। हर युग में संघर्ष था, परंतु Kalyug में यह आंतरिक है । Kalyug हमें अपने भीतर के धर्म-अधर्म से लड़ना सिखाता है । Kalyug में मानवता का पालन ही सबसे बड़ा धर्म है ।
कलह का युग KALYUG
जब नर ही अछूता रहा नही तो
कौन जगत कल्याण करे ?
कौन संयमी बने सजग हो
कौन परम बलिदान करे ?
परमेश्वर की शरण में जाकर
उनका ही सम्मान करे ।
धर्म ज्ञान की शीला टिकाकर
कौन जगत उत्थान करे ?
नर में नरता बची नही
ना बचे कोई नर के जैसे ।
बन विचरते है खूब विकल
जग में ये जानवर के जैसे ।
पर कहां इन्हें कुछ होश नही
ना शर्म हया न लाज बची ।
धर्म की जय जयकार हो ऐसे
एक नही आवाज बची ।
अब ऐसे में क्या बोलो धरा में
कोई सुखी रह पाएगा ?
अब बोलो कौन नारी के हित में
महाभारत कर पाएगा ?
कौन भक्त निज सेवा भाव से
लंका दहन करेगा ?
कौन राम बनकर इस युग में
रावण हनन करेगा ?
कृष्ण कर्ण सा सखा कहा,
इस युग में मिल पाएगा ।
अंगारों पर कहां फूल
स्वच्छंद हो खिल पाएगा ।
नर और मादा दोनो ही है
जहां काम के लोभी
सावित्री सा सतित्व बोलो
यहा क्या मिल पायेगा।
ऐसे में भी कुछ नरजन है
शोलो के अभिलाषी
गतवर और प्रतापी है
सौजन्य और संन्यासी
कुछ कर्मयोगी भी है
इस कुंठित से जग में
ऐसे भी कुछ पक्षी है जो
उड़ना चाहे नभ में
परिसीमा की सीमा
सारी लांघ रहे है देखो
कुछ पंछी नीड़ो से
बाहर झांक रहे है देखो
देख रहें है जीवन की
विचित्र सुंदरता खोकर
रह पाएंगे ये नभचर
क्या नीड़ो के ही होकर ?
पर जो प्रकृति को तरेरकर
यूं ही मुख दिखलाते
जो नियमों को भी मरोड़कर
सह अनुकूल बनाते
कहा शोभता राजा जीवन
पराक्रमी नरजन को
कहा शोभता नरम सेज
सौंदर्य सहजता मन को
कहा सिंह बिन घावों के
जंगल में धौप जमाता
गीदड़ केवल खाल पहनकर
कहा सिंह बन पाता
परोपकार वश जो संकट
को निर्भय गले लगाए
वही भरे कलयुग में
साधु सिद्ध मुनि कहलाए
कलह भरे कलयुग में
यह कुछ राम बचे है देखो
जो संघर्ष में भी करते
विश्राम बचे है देखो
श्याम बचे है कर्ण बचे है
और बचे है सीता
सावित्री से बचे है युग में
परम शील परिणीता
आप से ये विनती है यह युग
कलयुग न बन पाए
नाम भले हो कलयुग पर ये
कलयुग न कहलाए
भले राम ना बन पाए
पर रावण भी न बनिए
ना कंस ना दुसासन
अहिरावण भी न बनिए
श्याम नही बन पाए तो
ना दुर्योधन बन जाए
मानव है तो मानव युग में
बस मानव बन जाए ।
Kavita By – bhole_bhupesh
Note – कलयुग और कलियुग शब्द में Confuse ना हो । दोनों शब्द एक ही के लिए प्रयुक्त होता है । हालांकि इसका सही रूप / सही वर्तनी / मानक रूप कलियुग है लेकिन हम सभी आम बोलचाल में कलयुग Kalyug कह देते हैं । आप जिसमें भी सहज महसूस करते हैं उसे ध्यान में रखते हुए आगे पढ़ें 🙏
कलयुग ( Kalyug ) अर्थात कलह का युग और कलह का अर्थ होता है कलेश संघर्ष युद्ध । और जिस युग के नाम में ही युद्ध और संघर्ष है मेरे मित्र , उस युग में तो संघर्ष होगा ही होगा ।
परंतु संघर्ष तो हर युग में था सतयुग, द्वापर अथवा त्रेता परन्तु कलयुग में ऐसा विशेष क्या है ? शायद इसलिए क्योंकि Kalyug में पाप और पुण्य का संघर्ष प्रत्येक मनुष्यों में अंतर्निहित है यह किसी लोक, प्रदेश अथवा परिवार की बात नहीं है यह बात है अपने ही मन की । यहां रावण भी हम है और राम भी हम , कृष्ण भी हम कंस भी हम , कौरव भी हम और पांडव भी ।
अर्थात संघर्ष प्रत्येक मनुष्य के अंदर है ।
परंतु हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि इसी धरती पर इसी ब्रह्माण्ड में इसी universe में ऐसे धुरंधर हुए है जिन्होंने धर्म को उसके चरम पर ले जाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया है ।
ऐसे मर्यादित पुरुष जिन्होंने अपने पिता के वचन और उनके आदेश को बिना किसी प्रश्न के बिना किसी विरोध के शिरोधार्य किया और वन में चौदह वर्ष बिताने का निर्णय लिया, और इस पर भी ऐसी भार्या जिन्होंने अपने पति के चरणों को अपना स्वर्ग माना और पति के साथ स्वयं वनवास को प्रस्थान किए ।
ऐसे ऐसे अनुज हुए एक ने अपने भ्राता की सेवा के लिए महल छोड़ कर वनवास जाने का निर्णय लिया और दूसरे ने बड़े भैया की अनुपस्थिति में उनके खड़ाऊ के छत्र तले शासन किया कभी स्वयं को राजा घोषित नहीं किया ।
ऐसी प्रजा हुई जो अपने राजा के साथ वन जाने की जिद पर अड़ गए।
परंतु हम इसी युग में ऐसे भाई भी हुए जो अपने ही भाइयों से ईर्ष्यावश शत्रुओं जैसा व्यवहार किया उन्हें मारने की चेष्टा की उन्हें 5 गांव जैसे छोटी वस्तु न दे सके।
ऐसे मामा हुए जिसने अपने ही भांजे को मारने हेतु सहस्त्रों प्रपंच किए परन्तु अंत में उसी के हाथों मारे गए ।
ऐसे गुरु हुए जिन्होंने अपने ही शिष्य का अंगूठा कटवाया और ऐसे शिष्य हुए जिन्होंने अपने गुरु के एक आज्ञा पर अपना समस्त सामर्थ्य काटकर अपने गुरु के सामने रख दिया ।
ऐसी पत्नी हुई जिसने अपने पति के प्राण की रक्षा हेतु स्वयं यम से भिड़ने के पूर्व एक बार भी नहीं सोची ।
परंतु मैं ये सब आपको क्यों बता रहा हु व्यक्ति अपने अतीत से सीखता है हो सकता हैं आप धर्म अथवा ग्रंथों में नहीं मानते हो परन्तु इसे इतिहास की तरह पढ़ कर देखिए और इन कहानियों से शिक्षा लीजिए ।
जिन कहानियों में प्रेरणा और शिक्षा होती है उनके अस्तित्व पर सवाल न उठाकर उनके द्वारा मिल रहे ज्ञान को अर्जित करना बुद्धि जीवो की निशानी है और ये उचित भी है ।
मैने अपनी कविता के माध्यम उसी दुविधा और कलयुग ( Kalyug ) की विडंबना को व्यक्त करने का प्रयास किया है उसके बाद के अंतिम पंक्तियों में आप सब के लिए मेरी प्रार्थना है । मै तो चाहता हु कि ये युग ( Kalyug ) सर्वश्रेष्ठ युग के श्रेणी में प्रथम स्थान में हो ।
कहते है Kalyug में केवल ईश्वर का नाम लेने मात्र से पुण्य की प्राप्ति होती है अगर आप इन सब बातों पर भरोसा नहीं करते तो आप को मै केवल एक धर्म का पालन करने के लिए विनती कर सकता हु । और वो है मानवता का धर्म मेरी दृष्टि में मानवता सबसे बड़ा धर्म है, और उसका पालन ही हमे सर्वश्रेष्ठ बना सकता है ।